ढूंढ रही हु...
ढूंढ रही हु...
ब्लॉग्स और ट्विटर के दौर में,
मैं कविता लिख रही हूँ
किताब आप लोग पढ़ोगे नहीं इसलिए
फेसबुक पे पोस्ट कर रही हूँ।
नए दौर के इस हालात में,
मैं पुराने ख़यालात ढूंढ रही हूं।
वाई फई के कनेक्शन के दौर में,
मैं सल कनेक्शन ढूंढ रही हूं
आनलाइन विश के दौर में,
मैं टूटा तारा ढूंढ रही हूं।
इन्टरनेशनल ट्रिप की चकाचौंध में,
मैं वो कागज़ की कश्ती ढूंढ रही हूं
आरटिफिशियल इनटेलिजेन्स की दौड़ में,
मैं इंसानियत के जज़्बात ढूंढ रही हूं।
नए दौर के इस हालात में,
मैं पुराने ख़यालात ढूंढ रही हूं।
काउजुअल डेटिंग के दौर में,
मैं सोलमेट ढूंढ रही हूं
शोरट्स और मिनि स्कर्ट के दौर में,
मैं अपनी माँ की
पुरानी साड़ी ढूंढ रही हूं।
बढ़ती उम्र में ,मैं अपना बचपन ढूंढ रही हूं
अपने बच्चों में, मैं अपनी परछाईं ढूंढ रही हूं।
व्हाटस ऐप के दौर में,
मैं पोस्टमैन का साइकिल पे आना ढूंढ रही हूं
मिशन मार्स के दौर में,
मैं चंदा में अपना मामा ढूंढ रही हूं
इमोजी के दौर में,
मैं चेहरे पे हाव भाव ढूंढ रही हूं।
नए दौर के इस हालात में,
मैं पुराने ख़यालात ढूंढ रही हूं।
