छूमंतर
छूमंतर
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छूमंतर! ये वक्त हो जाएगा।
तू इसे पकड़ ना पाएगा।
तू इससे पंजे ना लड़ा,
तुझे थका के ये आगे निकल जाएगा।
जब वक्त अच्छा हो तो
वो ख़ुदा का नेक बंदा लगता है।
जब वक्त बुरा हो तो
सब कुछ गंदा लगता है।
यूं तो है छोटे-छोटे लम्हों से बना
दिन, दुपहरी, सांझ और रात में बंटा।
पर इस के अरसों में दम है तेरे
हौसलों को पटकने का।
इसके बरसों में राज़ है छुपा
तेरे चेहरे से छलकती झुर्रियों का।
कल की तस्वीरों में
क्या खुद को जाकर देखा तुमने?
आईने में आज जब झांका तो
खुद को बदला हुआ पाया तुम ने,
यही वक्त है जो दिखता है बदलाव में,
रुकता ही नहीं है, चाहे बेड़ियाँ ही बांध दो इसके पाँव में।
