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VANSHIKA JAIN

Children Stories

4.8  

VANSHIKA JAIN

Children Stories

चाइल्डहुड से एडल्टहुड का सफर

चाइल्डहुड से एडल्टहुड का सफर

2 mins
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बचपन के वो दिन याद आते हैं मुझे,

 जब बिना किसी चिंता के खेला करती थी मैं ,

ना पढ़ाई की टेंशन ,ना करियर कि ,

 बस स्कूल से मिला हुआ होमवर्क किया करती थी मैं.


मम्मी की डांट के बाद पापा का प्यार,

जन्मदिन पर मिलते थे बहुत सारे उपहार ,

दिवाली पर बस फुलझड़ियों से मनता था त्यौहार,

सबसे ज्यादा खुशी तब होती थी जब आता था रविवार


सुबह स्कूल जाने के बाद ,घर आने की खुशी ,

ना ट्यूशन ,कोचिंग जाने की टेंशन ना जल्दी उठने की , 

बस आज पार्क में क्या खेलना है यही सोचा करती थी मैं.


अब जब थोड़े बड़े हो गए हैं ,

तो ऐसा लगता है काश बचपन के वो दिन वापस आ जाए,

 कुछ काम अधूरे रह गए हैं बस उन काम को पूरा कर पाए.


रिलेशनशिप से पहले ब्रेकअप का डर,

और स्कूल में फेल होने का ,

अब तो मम्मी की डांट के बाद पापा भी नहीं दुलारतै ,

एक्सपेक्टेशन बहुत बढ़ गई है ,और थोड़े जजमेंटल होकर लोगों को पुकारते.


एडल्टहुड में हमारी एंट्री कुछ खास नहीं है ,

स्कूल से कॉलेज में आ गए पर स्कूल के बहुत दोस्त पीछे छूट गए ,

प्रैक्टिकल और असाइनमेंट पेंडिंग पड़े हैं ,

फेल होने के तो रिकॉर्ड टूट गए हैं.


अब रिलेशनशिप से ज्यादा इंटर्नशिप जरूरी हो गई है,

 इंटरव्यू में क्या होगा यही सोचा करते हैं.


कार्टून की जगह अनिमे ने ली ,

पार्क में खेलने की जगह, दोस्तों के साथ घूमने जाने ने ली,

 रेडियो की जगह स्पॉटिफाई ने ली,

 इसलिए अब ऐसा ही लगता है कि सबसे ज्यादा खुशियां बचपन में ही थी.


काश ऐसा होता कि बचपन वापस आ जाए ,

ताकि बड़े होने का ख्याल ही चला जाए.


बारिश में कूदकर ,

मिट्टी में खेल कर ,

बड़े तो हो गए हैं.


छोटे थे तब बड़े होने का था इंतजार,

पर अब ऐसा लगता है बचपन ही ठीक था यार.


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