चाह
चाह
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ख़्वाहिश बहुत बड़ी नहीं थी उनकी
बस कुछ वक्त हमारा चाहते थे।
कुछ सुनाने की चाह उन्हें नहीं थी
बस हमारी बातों पे गौर करना चाहते थे।
वो कुछ लम्हों में हमें
सालों की यादें देना चाहते थे।
गुस्सा भी बड़ी शिद्दत से किया करते थे
पर मान जाने की चाह भी वो रखते थे।
ना जाने क्या देख लिया था हममें
जो अपना वक्त वो हमें देना चाहते थे।
शायद कैद इस पंछी को वो
आज़ाद देखना चाहते थे।
पर उनको क्या बताये
उनके साथ वो आज़ादी भी चली गई।
उनके साथ जो हसीन जिंदगी हमने जी ली
वो भी कुछ पलों में गुजर गई।