बहेगी कुछ देर और बहेगी
बहेगी कुछ देर और बहेगी
वो वही थी जो चली
ज़िन्दगी से परे
आसमा तले
वो अकेले
सिमट रही थी किसी
तूफान के सिले
यूं ही बिन फ़िराक़ दस्तक
हर मोड़ पे टूटती जूझती
सलीके से परे
रूह झिंझोरे
बयान क्या करे
कोई दास्तां ही नहीं
सिसकियों से भी तो क्या
पहचान ही नहीं
हर ज़ख्म खुद भरे
काफ़िर अक्सर हर
प्यास यूंही बुझाते रहे
खुद भर अधूरा उसे कर गए
एक उम्र से वो रही हदों में
अब कहीं ख़तम हो तो
सहर दोपहर में
ऐसा भी तो नहीं
के वक़्त ना हुआ हो
उसे ढूंढते कोई शख्स सा गुमा हो
अक्स हर आशिकी का वो के चली है
अब नहीं थमती ये बहुत रुकी है
इसे मत कहो के रोक ले किसी को
ये रुक गई तबाह करेगी सभी को
बसा रखा है जहां का सभी कुछ इसी ने
अपने किरदार का कुछ और बहुत
साकी का इसने
के अरमान तो पूछो कोई किसी से
कोई तो वजह हो
हर एहतराम इसी से
ना कर यह गीला अब
यूं हुजूम ना ढूंढ
कर हर वजह बेशक
यूं सुकून ना बुन
बेवफा तो खैर यह नहीं
पर बेगुनाह हो ऐसा भी नहीं
कई कसमें थी इसकी भी
जो आखिर जताई गई
आबरू कई दफा लुटाई गई
यह दर्द का काफ़िला है
इसे बो के तो देखो
कई दरख़्त लगेंगे इसे जलाते
समय में
कोफ्त किसी लफ़्ज़ से हुए
तो साजा ना हो
इस बेजुबान को बहने दो
इस से अब कोई दगा ना हो
गिरी बहुत अगर टूट जाती
किसी शख्स के वादे पे
यह भी अगर जाती
नहीं जुझ पाती किसी के रुख से
हर शख्स को गुनेहगार कराती
ऐसा भी नहीं के तोड़ा ना गया हो
नहीं ऐसा भी ना संझोया गया हो
हौसला है अभी रवानी में है
अभी बहेगी अभी जवानी में है
कुछ वक़्त और एक दिन रुकेगी
कई बस्तियां ख़ुशियाँ दुबेंगी
आखिर यह भी भरेगी ज़िंदा रहेगी
हर बर्बादी का मंज़र कारवां करेगी