STORYMIRROR

Amol Metkar

Others

3  

Amol Metkar

Others

बारीश

बारीश

1 min
301

अब के बरस, बरस जाए उम्मीद की बारिश

हौसलों की ज़मीन पर दरारें बहुत है 

चाहतों का मकान गिरवी है 

और दिल पे अनुमानों का कर्ज बहुत है


अब के बरस, बरस जाए सुकून की बारिश

सुलगते हुए इस दिल में प्यास बहुत है

चेहरो की मुस्काने गिरवी है

और माथे पर फ़िक्र की लकीरें बहुत है 


अब के बरस, बरस जाए चाहत की बारिश

नफरतों का दिलो पे इख्तियार बहुत है

कागज़ की कश्तीयाँ गिरवी है

और नन्हे परिंदों में उड़ने की चाह बहुत है 


Rate this content
Log in

More hindi poem from Amol Metkar