अंधेर नगरी.....
अंधेर नगरी.....
सुना था....... पढ़ा था,
"अंधेर नगरी चोपट राजा" "टके सेर भाजी, टके सेर खाजा"।
बार बार मन मे उठता बस यही विचार,
कुछ लिख कर ही कर सकता हूँ प्रतिकार।
रोज पूछता हूँ, अपने अपने मन से क्यों चाहिए, मुझे ये संसार,
जहाँ देखो, तहां सिर्फ हाहाकार।
क्यों यहाँ ईश्वर भी बुत बना,
खड़ा है बेकार सृष्टि ने पहना,
यहाँ बेरंगो का हार
क्यों झूठे आंडबरो का यह श्रृंगार,
इस धरती पर न जाने कब से
क्यों अवसरवादियों का बस एकाधिकार।
इस धरा पर गहन अंधकार का कैसा है ये चमत्कार
क्यों है यहाँ, दिनकर का भी लघु आकार,
छाया है जन जन के ईमान में कोहरा
क्यों बेईमानो का सिर्फ यहाँ है इश्तहार।
हर पल, हर क्षण, एक दूसरे को ठगते
क्यों मानवता है ऐसी फितरत का शिकार।
थक गया हूँ मैं, छटपटा गया हूँ मैं
क्यों फिर भी दिल मेरा,
सब स्वीकार करने को तैयार।
झूठी ये दुनिया, झूठा ये भगवान
वाह साहेब, अजब गजब ये झूठो का संसार।
जनता हूँ सब मगर, चुप हूँ
क्योंकि अंधेर दुनिया का बस यहीं अलंकार।
सुना था......सच है कलयुग में,
जीने का बस यही आधार,
"अंधेर नगरी चोपट राजा" "टके सेर भाजी, टके सेर खाजा"।