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मनुष्य पहाड़ तक स्त्री विमर्श चाय अदरक वाली खूबसूरत शाम सूक्ष्म प्रकृति सदियों से लेकिन अब हकीकत में मुमकिन नही... सुबह वाली चाय तोह मैं बन ही जाऊँगा मुस्कान इस ख्वाबो वाली सपनों से... हमेशा जरा बचके ही रहना पगली भूख दुआ किसका इन दिखावे वालें अपनों से... शाम से गुपचुप बातें बर्फ लेकिन तू चाय के साथ वाली नमकिन नही... हो सके तोह दूर ही रहना मनवणे

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