कान्हा
कान्हा
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मां तुझसे मेरी सुब ,
होती तुझसे शाम
तू मेरी मैया यशोदा
मैं तेरा घनश्याम
दिन भर मैं गैया चराऊँ
शाम ढले घर आऊँ
तू बस मेरी बाट निहारे
द्वार खड़े तुझको पाऊँ
याद तेरी जब आये मुझको
वन मे बस मै बंसी बजाऊ
तेरे हाथ से माखन खाकर
मैया मै बलिहारी जाऊं
मैं तेरा घनश्याम हूं मैया
मैं ही तेरा श्याम
देख तेरी तनी भृकुटि
तेरे मन की समझ जाऊ
कर गलबहियां चुपके से तुझको
बस यूं ही मनाता हूं मैं
हाथ मे तेरे माखन मिश्री
देख समझ जाता हूं मैं
होठों पर मुस्कान तेरी
आंखों में गुस्सा रहता है
मन में तेरे मगर ओ मैया
मुरली वाला रहता है।
