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दहलीज़ गवाह है

दहलीज़ गवाह है

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दहलीज़ घर की गवाह है कि

एक लड़की गुड़ियों से खेलती,

नन्हा सा फ्रॉक पहन कर इठलाती ,

अपने सीमित से आकाश तले

एक दिन देखते देखते बड़ी हो गई।

दहलीज़ उस घर की गवाह है,

बच्ची बड़ी हो गई पर कभी दहलीज़ नहीं लांघी।

विवाह का दिन आया, डोली उठने लगी

माँ ने बेटी को समझाया,

"बेटी, वधू की आदर्श परम्परा निभाना

जिस घर डोली मे जा रही हो,

उस घर से अर्थी पर ही निकलना।

और देख! तूने जैसे इस घर को अपना गाँव माना,

चौराहे को शहर, और शहर को विदेश जाना

उसी तरह ससुराल में रहना।

जिस रोशनी को तूने यहाँ नहीं देखा,

उसे देखने की कभी जिद ना करना। "

अफसोस!

दहलीज़ कई घरों में एक लक्ष्मण रेखा सी

कई बढते कदम को रोके हुए है।

और कही,

इंसानी भेड़ियों की हैवानियत दहलीज़ लांघ जाने वाली को पुनः घर तक सिमटा देती हैं।



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