बूढ़ों की सनक
बूढ़ों की सनक


बूढ़ों की सनक की न पूछो बात
कोई कुृछ कहें करतें हैं मन की बात।
सही या गलत फर्क नहीं पड़ता
करना है उनको यह जोर पकड़ता ।
रोकना टोकना अब नहीं सुहाता
ज्यादा समझाना गुस्सा दिलाता।
अजीब सी सनकी वे हो जाते
जिस काम को रोको वही
कर जाते।
गलत कर मुकरना ,बच्चों सा व्यवहार
एहसास दिलाओ तो लड़ने को तैयार।
बुढ़ापा सच में बड़ा ही कठिन
अकेले तो मानो जीवन नामुमकिन।
सनक उनकी तभी बढ़ती है
जब घर में उनकी पूृछ न होती।
जिंदगी भर जिस परिवार के लिए कमाया
तो बाप बेचारा सोचे क्या खोया पाया।
अब सब उसको बोझ समझते
बढ़ऊ सटक गया ये कहते ।
जब ऐसा होगा परिवार का व्यवहार
तो क्या करेगा बूढ़ा हो लाचार।
अजीब असुरक्षा का भाव मन कर जाता
दुनिया भर का कूड़ा करकट घर ले आता।
भगवान किसी बूढ़े को सनकी न बनाए
परिवार के प्यार में वह जीवन बिताए ।