समाज सेविका, अनेकों राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित, अमृतधारा फाउंडेशन एनजीओ की संस्थापिका अध्यक्ष
जिन्दगियां कितनी लाचारी बेबसी, मजबूरी दम तोड़ रही है। जिन्दगियां कितनी लाचारी बेबसी, मजबूरी दम तोड़ रही है।
उस आग को अपने भीतर ही समेटे गंतव्य की ओर बढ़ा जा रहा था मानो बीती रात ने उसके अंतःकरण को नवीन ज्ञान ... उस आग को अपने भीतर ही समेटे गंतव्य की ओर बढ़ा जा रहा था मानो बीती रात ने उसके अं...
अगर नन्ही चिड़िया ने आसमान छूने की मन में ठान ली तो फिर उसे अपने आसपास उड़ते बसते बाज, गिद्दो से डरन... अगर नन्ही चिड़िया ने आसमान छूने की मन में ठान ली तो फिर उसे अपने आसपास उड़ते बसत...