Rajeev Upadhyay
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मूलतः कविता लिखता हूँ। कभी कभी व्यंग्य, लेख व लघुकथा लिखता हूँ। हिन्दी में कविताओं का अनुवाद। https://www.rajeevupadhyay.in/

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मैं पथ बन हर पल खड़ा हूँ कितने पथिक आए-चले गए। कुछ देर तक ठहरे कुछ गहरे कहीं तक उतरे और पल में कुछ कहानी नई कर गुजरे। कितने पथिक आए-चले गए।। ~ राजीव उपाध्याय

समझा जिसे लहू अपने रगों का। देखा ज़हर वो मिला रहा था॥ राजीव उपाध्याय

मेरे पैरों की मिट्टी ही मेरे असबाब हैं दूब पर बिखरी ओस ये मेहराब हैं॥ राजीव उपाध्याय

घुटन से झुकती जाती है सर्द रातों में हवा जब बूँदें हौले से आकर तुम्हारी सूरज रेशमी कर जाती हैं। राजीव उपाध्याय

जब इश्क था तो बेवफा, दोनों हुए होंगे। कोई जल के रह गया, कोई बुझ के रह गया। ~ राजीव उपाध्याय


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