मैं पथ बन हर पल खड़ा हूँ कितने पथिक आए-चले गए। कुछ देर तक ठहरे कुछ गहरे कहीं तक उतरे और पल में कुछ कहानी नई कर गुजरे। कितने पथिक आए-चले गए।। ~ राजीव उपाध्याय
घुटन से झुकती जाती है सर्द रातों में हवा जब बूँदें हौले से आकर तुम्हारी सूरज रेशमी कर जाती हैं। राजीव उपाध्याय