मुक्तक निभाया ही नहीं तुमने, तुमने बस आजमाया है। हमने संग तेरे जीवन का एक सपना सजाया है। तुम्हें बस प्यार था खुद से ये तुमने कर दिया साबित। करके विश्वास हमने तुम पर धोखा ही खाया है। नूतन नवल
मुक्तक शिकायत रोज़ करती हूं मैं तेरे साथ रहने की। अब हिम्मत नहीं मुझमें यूं तन्हाई को सहने की। वो चांद भी गवाह रहा है,तेरे संग रहने का। आदत हो गई मुझको सभी कुछ उससे कहने की। नूतन नवल
जिम्मेदारियों ने सब सिखा दिया।। उम्र से पहले ही बड़ा बना दिया।। वक्त चार कदम आगे चलता रहा मुझसे यारो।। और मुझे वक्त ने अपनी रफ्तार से आगे चलना सीखा दिया।। नूतन शर्मा✍️
शुरुवात तो हुई जमीं से थी। लेकिन शायद भूल गए हैं।। हम भी पहले टुकड़े थे जमीं के।। लेकिन आसमां में पहुंच कर मगरुर हुए हैं।। नूतन शर्मा
आवाज़ हर किसी के मन को छू जाए। खुद की आवाज़ ऐसी बनाना चाहती हूं।। खामोश हूं अगर, तो उस खामोशी का सन्नाटा भी ऐसा हो। जिसकी आवाज़ भी आए तो दूर तक शोर मचा दे। नूतन शर्मा
तेरी रूह के साए में, कुछ देर ठहर जाने दे। यूं खफा न हो, कुछ देर थम जाने दे। अभी तो शुरू हुई है ये जिंदगी। आहिस्ता आहिस्ता ही सही, गुजर जाने दे। ये लम्हे कुछ देर ही तो खुशनुमा हैं। इन्हें जी भर के जी जाने दे। सफर बाकी है अभी, दूर तक जायेगा। चले जाना,मंजिल का पता तो मिल जाने दे। तेरे साए में सुकून का एक लम्हा भी काफी है। यूं खुद को काफ़िर मत हो जाने दे। तेरी रूह के साए में, कुछ देर ठहर जाने दे। नूतन
, में शब्द हूं। मैने ही खुद को पिरोकर कविता को रचा है। हर भाव को रचना के माध्यम से, मैने ही तुम्हारे सम्मुख रखा है। जो लफ्ज़ मेरी जुबां न कह पाई कभी। उन्हीं सब भावों को मेरी कविता ने तुम तक पहुंचा के रखा है नूतन शर्मा
आंखों में सपने हजारों लिए। हर रोज़ उन्हें बिखरते देखा है। हां, मैने हर रोज़ एक औरत को। खुद के सपनों के लिए, मरते देखा है। नूतन शर्मा