कभी कोई शायरी, कभी कोई नज़्म गुनगुनाती है। उसे शायरा न समझें जनाब, वो बस अपने जज़्बात जताती है !!!
बाबा के संग हर लम्हे को, खुल कर मैं रोज़ जी लेती हूँ, इमरजेंसी के सायरन को कुछ ऐसे, जीवन में सी लेती... बाबा के संग हर लम्हे को, खुल कर मैं रोज़ जी लेती हूँ, इमरजेंसी के सायरन को कुछ ऐ...
यह कविता गाँव से शहर आये इंसान की संवेदना व्यक्त करती है। यह कविता गाँव से शहर आये इंसान की संवेदना व्यक्त करती है।