कहानीकार
वैदेही गोबर घोलकर चबूतरे पर फैलाने लगी। उफ़ ! फिर से चिलक गई उसकी कमर। वैदेही गोबर घोलकर चबूतरे पर फैलाने लगी। उफ़ ! फिर से चिलक गई उसकी कमर।
ट्रेन जब ‘विश्वनाथ गंज’ स्टेशन पर रुकी तो दीनानाथ ने अपना झोला कंधे पर टांगा और सूटकेस उठाकर नीचे उत... ट्रेन जब ‘विश्वनाथ गंज’ स्टेशन पर रुकी तो दीनानाथ ने अपना झोला कंधे पर टांगा और ...
आज अम्मा बेहद खुश हैं । उनके बेटे की चिट्ठी आई है कि वह दादी बनने वाली हैं । कितने वर्षो से ये सुनने... आज अम्मा बेहद खुश हैं । उनके बेटे की चिट्ठी आई है कि वह दादी बनने वाली हैं । कित...
हरे-पीले, पके-अधपके आमों से लदे पेड़ों का बगीचा । बीच से निकली है सड़क । बगीचे को पार करती हुई मेरी ... हरे-पीले, पके-अधपके आमों से लदे पेड़ों का बगीचा । बीच से निकली है सड़क । बगीचे क...
जेल से जेल तक...। जेल से जेल तक...।
जेब को सोखती दोपहर...। जेब को सोखती दोपहर...।
चबूतरे का सच ! चबूतरे का सच !
खारा पानी...! खारा पानी...!
उत्तर का आकाश...। उत्तर का आकाश...।
अपनों के बीच...। अपनों के बीच...।