Vishal Sinha
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बड़ी शीतल है, रूह को सुकून देती है... एक चांद उगता है उसकी आंखों में भी...

मोहब्बत और नाउम्मीदी को जीवन का आधार कर लिया... बिगड़ते रिश्तों में दो बातें सुनकर सुधार कर लिया... टूट ना जाए ताल्लूक कहीं अपनों से ही.... अपनों से ही हमने किश्तों में उधार कर लिया....

जो अब है यौवन का दौर तो, ये जुल्फें सँवारती है तुम्हें.... जो ढल जाए ये दौर तो आना, मेरी नज़्में सँवारेंगी तुम्हें.....

कुछ इस तरह अंधेरों से राब्ता था मेरा.... की उसे देखा तो आंखों की रोशनी बह गई....

एक रोज नहीं तो दो पल ही सही, तू मिल तो कभी मैखाने में... कुछ मेरे सही कुछ तेरे सही, हर राज़ घोलेंगे पैमाने में.... जो गुलाब तुमने दिया था मुझे, वो आज भी है तहखाने में... तू मिल तो सही बतलाएं तुम्हें, तू खुदा भी था किसी ज़माने में....

हर शाम ख्वाबों के पर्दों के पार जाता हूँ मैं.... अपने ही लफ़्ज़ों से हर दफ़ा हार जाता हूँ मैं.... ग़ज़ल अपनी मुकम्मल करने के खातिर.... कभी सपनों को, कभी खुद को मार जाता हूँ मैं....

सुबह को भोर ओर शाम को साँझ लिख देता हूँ मैं.. ज़हन लफ्ज़ पैदा नही करती, और कलम को बाँझ लिख देता हूँ मैं....

तू एक अथाह समंदर है, मैं एक कतरे तक सीमित हूँ.... तू फुरसत से बनी एक पहेली है, मैं एक अर्धनिर्मित हूँ....

मेरे शेर महज़ शेर हैं, कोई आपबीती थोड़ी है.... तेरा हुस्न महज़ एक धोखा है, कोई परिनीति थोड़ी है... तू झूठा दावा भी कर, तुझे सर आँखों पे भी रखूं... ये इश्क़ है जनाब कोई राजनीति थोड़ी है...


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