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जागा सौरभ, मूर्तमान हो इधर-उधर फिरता अशरीर चमक उठी फिर वनस्पती, कौशिक* का पहने हुए चीर जागा सौरभ, मूर्तमान हो इधर-उधर फिरता अशरीर चमक उठी फिर वनस्पती, कौशिक* का पहन...
आज भी जीवन वही है, आज भी वह चेतना मधुरता का अंश मिलता वही जीवन देशना। आज भी जीवन वही है, आज भी वह चेतना मधुरता का अंश मिलता वही जीवन देशना।