कथा पुरातन कह रहा, दीप पर्व यह खास। घर लौटे थे राम जी, कर पूरा वनवास। कर पूरा वनवास, विजय रावण पर पाई दीप जले हर द्वार, राज्य ने खुशी मनाई। उसी काल से रीत, चली आई यह पावन दीप पर्व यह खास कह रहा कथा पुरातन। - कल्पना रामानी
जब अँधियारा पाप का, फैले चारों ओर। ज्योत जलाएँ पुण्य की, दीप धरें हर छोर। दीप धरें हर छोर, कालिमा मिटे हृदय की फैले धवल प्रकाश, रात आए चिर जय की। सुख देगा तब मीत, दीप का पर्व हमारा हो अंतर से दूर, पाप का जब अँधियारा। - कल्पना रामानी
पत्र लिखा है पुत्र ने, आएगा इस बार। दीप जलाने साथ में, फिर पुरखों के द्वार। फिर पुरखों के द्वार, पर्व की धूम मचेगी। भक्ति भाव के साथ, लक्ष्मी-मातु पुजेगी। माँ के मुख पर आज, अनोखा रंग दिखा है आएगा इस बार, पुत्र ने पत्र लिखा है। - कल्पना रामानी
उत्सव खूब मनाइए, साथ सकल परिवार। दीप प्रेम के बालिए, जगमग हो संसार। जगमग हो संसार, उजाला सौहर गाए। अपनों के उपहार, संग दीवाली लाए। तम की होगी हार, जयी होगा फिर वैभव साथ सकल परिवार, मने दीपों का उत्सव। - कल्पना रामानी
जगमग तारों से भरा, सजा गगन का थाल। आज अमावस रात है, लाई तम का काल। लाई तम का काल, जले दीपक घर-घर में और पर्व का दौर, चला हर गाँव शहर में एक नया उल्लास, धरा पर बिखरा पग-पग सजा गगन का थाल, भरा तारों से जगमग। -कल्पना रामानी
शुभ दीवाली आ गई, सजे सभी घर द्वार। रांगोली देहरी सजी, द्वारे वंदनवार। द्वारे वंदनवार, हजारों दीप जलेंगे लक्ष्मी माँ को आज, पूजने सभी जुटेंगे। पुष्प, दीप, सिंदूर, सजी पूजा की थाली लेकर शुभ संदेश, आ गई शुभ दीवाली। -कल्पना रामानी
थक जाऊँ तो पास बुलाए। नर्म छुअन से तन सहलाए। मिले सुखद, अहसास सलोना। क्या सखि साजन? नहीं, बिछौना! -कल्पना रामानी
साथ चले जब सीना ताने। बात न वो फिर मेरी माने। हाथ छुड़ाकर भागा जाता। क्या सखि साजन? ना सखि, छाता! -कल्पना रामानी, नवी मुंबई