आत्मवत् सर्व भूतेषु यः पश्यति सः पण्डिता ( जो सभी को अपने समान समझता है वही ज्ञानी हैं ) एवम्
आत्मन्ः प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत् ( जो स्वयं के लिए स्वीकार्य न हो वह दूसरों के साथ न करे )
ये दो मेरे आदर्श वाक्य हैं |
मेरे बारे में सबसे सटीक पंक्तियाँ जो मुझे लगती हैं वो यह हैं -
मै आईना हूँ... Read more
आत्मवत् सर्व भूतेषु यः पश्यति सः पण्डिता ( जो सभी को अपने समान समझता है वही ज्ञानी हैं ) एवम्
आत्मन्ः प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत् ( जो स्वयं के लिए स्वीकार्य न हो वह दूसरों के साथ न करे )
ये दो मेरे आदर्श वाक्य हैं |
मेरे बारे में सबसे सटीक पंक्तियाँ जो मुझे लगती हैं वो यह हैं -
मै आईना हूँ मेरी अपनी जवाबदेही हैं, जिसे पसंद न हो सामने से हट जाये Read less