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खुशहाल थी जिंदगी यारों उस पेड़ के नीचे ही, कब किसने छत के सपने देखे थे। खुशहाल थी जिंदगी यारों उस पेड़ के नीचे ही, कब किसने छत के सपने देखे थे।
आज जब खुद पर आई तो मुंह पर चुप्पी सी छाई। आज जब खुद पर आई तो मुंह पर चुप्पी सी छाई।