पुरखों की जमीनें हो या महबूब का घर, जिसे छोड दिया फिर पलटकर नहीं देखा..!!
दीवाना उसके घर का पता भी जानता है..! दीवाना उसके घर का पता भी जानता है..!
पास बैठो कि तुम पर मै कविता लिखूं, तेरे नयनों को बहती मै सरिता लिखूं। पास बैठो कि तुम पर मै कविता लिखूं, तेरे नयनों को बहती मै सरिता लिखूं।
तर्पण में अर्पण में, शीशे में दर्पण में, तीर में कमान में, तर्पण में अर्पण में, शीशे में दर्पण में, तीर में कमान में,