मैं मीरा, थोड़ी अनजान और थोड़ी जानी पहचानी. कृष्ण के इंतज़ार में स्याहियों से कागज़ो को रंगती आज आपको सुना रही हूँ मेरे दोहे २०२० में. जरूर बताईये की कैसे लगे.
Share with friendsमैं बनाकर ताजमहल , अपने मक़बरे पर पढ़ लिया करती हूँ, कलमा इश्क़ का मर चुके है ख्वाब, और अरमान, और वो रूह बस नहीं मरता, कमबख़्त , जज़्बा इश्क़ का
When we are ready to accept blame, responsibilities, and consequences with same spirit, we are unstoppable.