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अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान"
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संपादक, शब्द शिल्पी पत्रिका

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कभी उसकी बातें तो कभी खामोशियां अच्छी लगीं। कभी उसकी दूरियां तो कभी आगोशियां अच्छी लगीं। कभी नशे में चूर होकर जिन निगाहों से देखा उसने, कभी तीरे नज़र तो कभी मदहोशियां अच्छी लगीं।

पिघल रही है यादों की बर्फ अकेलेपन की तपिश से। कई हिमखंड सैलाब बनकर देखो तेजी से आ गए।

तुम अल्हड़ नदी सी थी। मैं गहरा समंदर था। एक गहरा समंदर तो तुम्हारे भी अंदर था। अयान

सूरज की गर्मी में तपकर खुद को मजबूत बनाना है। जीवन की हर मंजिल पाकर तिथि त्योहार मनाना है। राहों में निश्चित ही मित्रों कितनी बाधाओं के यक्ष प्रश्न, सही उत्तर ढूंढ कर खुद को बाधाओं से पार लगाना है। अनिल अयान

कितनी हसरत है दिल कि दास्ताँ लिख दूँ, अपने अधूरे से सफर मे एक मकाँ लिख दूँ. कोई छू ले अयान मेरे ठहरे हुए समुंदर को. ऊठी हलचल को मै एक बार जवाँ लिख दूँ.

ये न सोचना कि टूटकर बिखर जाएगी। ये जिंदगी है टूटेगी और निखर जाएगी। यह न सोच कि क्या होगा इस दुनिया में सूरज की तपिश से जिंदगी संवर जाएगी। अनिल अयान

सवाल बन के सामने खडा हो गया। सभी सवालों का एक हल रहा है वो।


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