सम्पूर्ण मानवता में सबसे अधिक निश्छल,पवित्र,निष्कलंक है बच्चों का मन... उनसे अधिक सहज और शांत कोई नहीं,इसलिए! उन्हें सदा प्रेम से ही समझाना चाहिए।ताकि वह कभी भी विषाद (डिप्रेस्ड) की अवस्था में ना गिरे
मन की गहराइयों का नाम प्रेम की अकुलाहट है उससे मिलने की बेचैनी -- शब्दों के जरिए; जब कहन हो जाती है तो तन-का झुरमुट भी वसंत-राग गाने लग जाता है।।
कुछ ऐसे रिश्ते जो आपके रक्तदान से भी बन जाते।क्यों कि! रक्त प्राप्तकर्त्ता और देने वाला,दोनों "वसुधैव कुटुंबकम्" की भाव से ही प्रेरित होते है।न कि,किसी जाति-पाति के भाव से...
कुछ ऐसे रिश्ते जो आपके रक्तदान से भी बन जाते।क्यों कि! रक्त प्राप्तकर्त्ता और देने वाला,दोनों "वसुधैव कुटुंबकम्" की भाव से ही प्रेरित होते है।न कि,किसी जाति-पाति के भाव से...
इस अंजान दुनिया में कोई अपना नहीं है-सब संबंध, रिश्ते नाते स्वार्थमूलक है --अपने काम से काम रखने वाले... वही व्यक्ति यहां सफल है जो इनकी ना सुने और,आत्माराम हो। यदि कोई अपना है तो सिर्फ!यह अनहद और विशाल प्रकृति -- इसकी विवधता संपन्नता।जैसे नदी-पर्वत-झील आदि
सीता की अग्नि परीक्षा या राम की विरह दास्तां तब भी और आज भी,स्त्री का पात्र संवेदन शील व कुछ अश्रु बहाकर ही विजीत होता आया है। प्रश्नचिह्न,सीता से अधिक राम पर कई बार उठे ।पर, हमनें सिर्फ सीता को केंद्र बिंदु माना और,उन्हें ही दीन हीन के रूप पेश किया