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देखना चाहता था अपने बालपन में भोगे हुए मैदान, गलियाँ सटे हुए मकान खंडहरों के अँधेरे कोनों में हिलकते... देखना चाहता था अपने बालपन में भोगे हुए मैदान, गलियाँ सटे हुए मकान खंडहरों के अँध...
सुबह-सुबह भी सड़क की धूल माहौल में कोहरे की तरह फ़ैली हुई थी मुझे कालिदास से मिलना था विदिशा में। सुबह-सुबह भी सड़क की धूल माहौल में कोहरे की तरह फ़ैली हुई थी मुझे कालिदास से मिलना...
यह दो हज़ार तेरह की छब्बीस जनवरी है सुबह का रंग सर्द है और धूप का गुनगुना अमर जवान ज्योति पर यह दो हज़ार तेरह की छब्बीस जनवरी है सुबह का रंग सर्द है और धूप का गुनगुना अमर जवा...
तेरहवीं सदी के समाज के गवाह हैं कोणार्क के पत्थर गवाह हैं उस वक़्त के शहंशाहों और लोगों के दिलों की ध... तेरहवीं सदी के समाज के गवाह हैं कोणार्क के पत्थर गवाह हैं उस वक़्त के शहंशाहों और...
किलों की दीवारें मजबूत होती हैं और किलों में बंद औरतें किले का सामान कुछ लोग भी होते हैं किलों में ब... किलों की दीवारें मजबूत होती हैं और किलों में बंद औरतें किले का सामान कुछ लोग भी ...