बन चुका जो आसमां का सितारा रहता हमसे दूर उसकी इच्छा की खातिर मुझे होना है मशहूर
रुतबा मेरा सिकन्दर सा था, नसीब अश्के समन्दर हुआ। फिर मैंने भी बदल ली फितरत झूठी मुस्कान का धुरन्दर हुआ। रजनी श्री बेदी जयपुर राजस्थान
परिंदा हूँ ,परवाज़ नही है, जीवन है ,पर साज़ नही है।। सारे दुख कैसे , कह पाउँ कहने को ,अल्फ़ाज़ नही है।।