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दरियों से सृष्टि सजाती है तृष्णा मिटाते अविचल बहती सुगंध भरी माटी में। दरियों से सृष्टि सजाती है तृष्णा मिटाते अविचल बहती सुगंध भरी माटी में।
यह कविता देश के हर उस नागरिक के लिए है जो देश को प्रगतिशील एवं उन्नतशील बनाने की कोशिश में लगें हैं।... यह कविता देश के हर उस नागरिक के लिए है जो देश को प्रगतिशील एवं उन्नतशील बनाने की...