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तू झलक रहा वतन के कणों में है तू रक्षक भारत पर पड़ती हर लाठी का। तू झलक रहा वतन के कणों में है तू रक्षक भारत पर पड़ती हर लाठी का।
मैं पग पर पग रख चल रहा हूँ, मैं नई उमंगों की तरंगों से सूर्योदय देख रहा हूँ! मैं पग पर पग रख चल रहा हूँ, मैं नई उमंगों की तरंगों से सूर्योदय देख रहा हूँ!
मैं पग पर पग रख चल रहा हूँ, मैं नई उमंगों की तरंगों सूर्योदय देख रहा हूँ! मैं पग पर पग रख चल रहा हूँ, मैं नई उमंगों की तरंगों सूर्योदय देख रहा हूँ!