तृप्ति वर्मा “अंतस”
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विचारो के मोती एक सूत्र में पिरोकर ख़ूबसूरत बनाने के कोशिश करती हुई एक मुक्त लेखिका।

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कभी-कभी लगता है कि ज़िंदगी की दौड़ हम ट्रेड्मिल पर दौड़ रहे हैं।कहीं पहुँच तो नही पा रहे, लेकिन सपनो और आकांक्षाओ का वज़न ज़रूर घट रहा है। -तृप्ति वर्मा “अंतस”


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