आसमान अपना हो तो बादल भी बनाने पड़ते हैं ख्वाहिश बारिश की हो तो घुटन भी सहनी होती है उतार चढ़ाव ज़िंदगी के कायदे हैं जो सिखाते हैं कि ख़ास रिश्ते भी निभाने से निभते हैं, कोशिश दिल से की जाये तो जीवन उत्सव और स्नेह सौगात है।
गरम पश्मीने में सारी खुशियां समेट ली कुछ बरफ में छूट गए वो ग़म किसके हैं पर्बतों में बाहें फैलाती खुशनुमा नज़्म सुनी वादियों में गूंजता मगर वो फ़सानें किसके है, हर उलझन को बारीकी से खोला मगर जो अब तक ना सुलझी वो पहेली कौनसी है होठों पे खिलखिलाती हंसी सबने देखी है दिल में पाले हुए हैं जो दर्द …. किसके हैं !
ये राहतें चाहतें आस पास बिछा ली हैं थोड़ी ख़ुदगर्ज़ी की आदतें बना ली हैं सुकून को तलाशना छोड़ दिया है मैनें ख़ामोशी को सहेली बना ली है, ख़ामोशी की भी अपनी ही ज़बान है बंद लफ़्ज़ों की ये अनकही दास्तान है हर लफ्ज़ वक़त के तारों से सिला हुआ है बंद होठों की मगर ये कारीगरी बेमिसाल है.
गरम पश्मीने में सारी खुशियां समेट ली कुछ बरफ में छूट गए वो ग़म किसके हैं पर्बतों में बाहें फैलाती एक खुशनुमा नज़्म सुनी वादियों में गूंजता मगर वो फ़सानें किसके है, हर खेल में बाज़ी मार गए हैं हम मग़र जो अब तक ना सुलझी वो पहेली कौनसी है होठों पे खिलखिलाती हंसी सबने देखी है दिल में पाले हुए हैं जो दर्द सबने.. किसके हैं ! -नीतू माथुर
मेरा धनुष है मेरी कमान तरकश के सब तीर समान जग जब अपनी चाल रचता बचे रहना नहीं आसान जीत हार सब स्पर्धा मेरी लड़ूँ या नहीं मर्ज़ी मेरी अब समझ गई हूँ खेल सारे हर जंग अब दोस्त मेरी - नीतू माथुर
गरम पश्मीने में सारी खुशियां समेट ली कुछ बरफ में छूट गए वो ग़म किसके हैं पर्बतों में बाहें फैलाती एक खुशनुमा नज़्म सुनी वादियों में गूंजता मगर वो फसाना किसका है, हर खेल में बाज़ी मार गए हैं हम मग़र जो अब तक ना सुलझी वो पहेली कौनसी है होठों पे खिलखिलाती हंसी सबने देखी है दिल में पाले हुए हैं जो दर्द सबने.. किसके हैं !
डायरी के पन्नों से आती है खुशबू तेरी स्याही के लफ्ज़ याद दिलाते हैं तेरी हर कलाम में ज़िक्र बस तेरा है यारा मेरी ग़ज़ल का अंदाज़ है सूरत तेरी।
तुझे चाह के कुछ ना चाहा, ना ख्वाहिश कोई बाकी रही, तेरे प्यार तेरी दोस्ती से ही हरदम मेरे दिल की यारी रही, रोम रोम महका गुलाब जैसे हर अंगड़ाई में धड़कन मचली सोचा तो सामने तेरा अक्स था मानों बरसों की मुराद पूरी हुई। Nitu Mathur