न विकल्प की न गल्प की, बात करें सच्ची प्रीत के संकल्प की, न पहले की, न बाद की, बात करें सदा संग के कल्प की। यही जीवन का सार है, प्रीत में न जीत न हार है, क्या आगे क्या पीछे, आपकी प्रीत ही आपका संसार है।
द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका से, उबरी नहीं धरती अब तक, क्यों भूल गया विश्व वह दिन, हीरोसीमा नागासाकी पर बम गिरा था जब। दो विश्वयुद्ध की दोहरी मार से, हुआ था जो प्रकृति का शमन, क्यों थोप रहे तृतीय विश्वयुद्ध, कुछ तो करो अंजाम का चिंतन।
अज्ञान का था तम घोर प्रबल, खोले गुरु ने ज्ञान के चक्षु, दिया ज्ञान का भंडार खोल कर, शिष्य जब बना ज्ञान का भिक्षु। श्रम के दीये जलाकर गुरु ने , शिष्य को दिए ज्ञान के मोती, अथक श्रम किया शिष्य ने भी, पा ली ज्ञान की प्रखर ज्योति।
मौसम यह बदलाव का आया, चलो मौसम के संग बदलें, कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें, एक दूजे के संग चलें। बदलाव जीवन का सतत नियम, चलो भावों को बदलें, मन में जो फैले दुर्भाव, उन कलुषित भावों को बदलें। परिवर्तन प्रकृति की पहचान, परिवर्तन की डगर पर चलें, चलो थोड़ा बदल लें ख़ुद को, बदलाव की हवा में बह लें। पुराने नियमों को छोड़ कर, नये नियमों को मान चलें, तोड़ कर पुरानी सारी बंदिशें, सारी रंजिशें मिटाते चलें। समय की