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जब मैं उड़ना...

जब मैं उड़ना चाहती थी अनंत आकाश में सपनों के पंख लगाकर तब तुमने मेरे पाँवों में कर्तव्यों की भारी जंजीर डाल रखी थी, अब अरसे बाद खुली जंजीर है, अनंत आकाश है इंतजार करता मगर......मैं उड़ना भूल गई हूँ। प्रभाविजय नेह सिवनी म.प्र. स्वरचित

By Prabha Gawande
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