चलती फिरूँ...उड़ती फिरूँ ....मस्त बनके पंछी में गगन में ...आफताब को अपना बनाऊं में रोको न मुझे छू लूँ... चलती फिरूँ...उड़ती फिरूँ ....मस्त बनके पंछी में गगन में ...आफताब को अपना बनाऊं मे...