सोच समझकर
सोच समझकर
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एक बुढ़िया थी उसके यहां दो नौकर रहते थे। बुढ़िया रोज मुरगे के बाग देते ही नौकरों को उठा देती थी। नौकरों को यह बात पसंद नहीं आती। नौकर हमेश यही सोचते की कैसे रोज देर तक सोया जा सके । एक दिन दोनो नौकरों ने सोचा की क्यू ना इस मुर्गे को ही मार डाले, न रहेगा मुर्गा तो बुढ़िया जल्दी नहीं उठेगी तो हमें भी जल्दी नहीं उठायेगी ।दोनो ने योजना बनाकर मुरगे को मार डाला अब बुढ़िया को सुबह सही समय का पता नहीं चल पाता था और बुढ़िया और जल्दी उठने लगी और नौकरों को और जल्दी उठा देती अब नौकरों को और भी अधिक मुश्किल हो गई। इसिलिए हम बिना सोचे कोई काम नहीं करना चाहिए।
