किस्सा झाडू का
किस्सा झाडू का
झाड़ू – यह एक ऐसा पवित्र शब्द है, जिसे भारत में प्रातः स्मरणीय शब्दों की श्रेणी में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। स्त्री जाति के जीवन में इस शब्द का विशेष महत्व है खासकर शादी के बाद। तो बात कुछ यूँ शुरू हुई कि मिनी रविवार की सुबह जब सो कर उठी तो कान में दादी की गुस्से से भरी आवाजें आने लगीं। मिनी आँखें मलते हुए बाथरूम की ओर बढ़ी कि तभी उसका पैर झाडू पर पड़ गया। ये देखते ही दादी जोर से चिल्ला कर बोली - “हे भगवान इस घर में सबकी अक्ल पर पत्थर पड़ गये हैं।" दादी के मुँह से ऐसी बात सुनकर मिनी को लगा कि शायद उसने कुछ गलत कर दिया है पर इतने में ही दादी बोल पडी - "मिनी झाड़ू को माथे से लगा कर एक कोने में रख दो। झाड़ू को पैर नहीं लगाते, ये लक्ष्मी होती है" ये सुनकर मिनी ने झाड़ू को माथे से लगाकर एक कोने में खड़ा कर दिया। दादी फिर बोली "अरे अरे झाड़ू को खड़ा नहीं करते लक्ष्मी रूठ जाती है, घर में ग़रीबी छा जाती है। इसे लिटा कर रखो "अब मिनी ने झाड़ू को लिटा कर रख दिया। पर अब तक मिनी के दिमाग में सवालों का तूफ़ान शुरू हो चुका था। मिनी जल्दी जल्दी ब्रश करके सीधे दादी के पास पहुंची और बोली " दादी अगर झाड़ू लक्ष्मी होती है तो उसके पास तो बहुत सारा पैसा होगा।" "पैसा कहां से आएगा?" दादी गुस्से से झल्ला उठी। "लाखों बार कहा है तेरी माँ से की सुबह उठते ही सबसे पहले झाड़ू लगा दिया कर वर्ना घर में दलिद्दर आ जाएगा, पर उसे तो आजकल योगा का शौक लग गया है। मैं तो समझा समझा कर थक चुकी हूँ पर मुझे क्या जैसा करेगी वैसा भरेगी" दादी ने गुस्से में आँखें तिरछी करते हुए कहा।
मिनी ने उत्सुकता से पूछा "दादी दलिद्दर कौन होता है? और कहाँ से आता है?" दादी बोली दलिद्दर अपने साथ गरीबी और भुखमरी लेकर आता है।" इतने में ही दरवाज़े की घंटी बजती है। मिनी तेजी से दरवाज़े की ओर दौड़ पड़ती है और दरवाज़ा खोलते ही सामने एक वृद्ध व्यक्ति को पाती है जिसके दोनों हाथों में एक एक लिफ़ाफ़ा है। मिनी सोच में पड़ जाती है कि हो ना हो यही दलिद्दर है और अपने साथ गरीबी और भुखमरी को लिफाफों में भर भर कर ले आया है। मिनी ने वृद्ध व्यक्ति से पूछा "आपका नाम दलिद्दर है क्या?" "नहीं तो मेरा नाम दिलजीत सिंह है और मैं आपकी दादी का भाई हूँ" वृद्ध ने अपना परिचय देते हुए कहा। "इन लिफ़ाफ़ो में क्या है?" मिनी ने आँखें बड़ी करते हुए पूछा। "समोसे और गरमागरम जलेबियाँ" वृद्ध ने मुस्कुरा कर जवाब दिया। मिनी के चेहरे पर भी मुस्कराहट छा गई और वह वापस दादी की तरफ दौड़ी। दिलजीत सिंह भी मिनी के पीछे पीछे घर में दाखिल हो गए। मिनी खुशी के मारे अपनी दादी से लिपट गई और बोली दादी सुबह झाड़ू ना लगने से दलिद्दर नहीं बल्कि दिलजीत सिंह आते हैं और वो भी समोसे और जलेबियाँ लेकर, अब समझी या नहीं कि कोई फिरकी ले रहा है।" मिनी के मुँह से PK फिल्म का ये डायलॉग सुनकर घर में सबकी हँसी फूट पड़ी। दिलजीत को भी सारा वाक्या समझने में देर ना लगी और वे दादी से बोले - "अरे मेरी प्यारी बहना हमें ग़रीब झाड़ू ने नहीं हमारे अंधविश्वास ने बनाया है। जानती है दुनिया का सबसे अमीर देश कतार है और वो झाड़ू लगाने से नहीं बल्कि तेल बेचने से अमीर बना है।" "मैं तो समझती थी कि अमेरिका सबसे अमीर देश है।" दादी हैरानी जताते हुए बोली कि तभी दादाजी उनकी बात को बीच में काटते हुए बोले - "पर अमेरिका वाले तो झाड़ू नहीं लगाते, उनके यहां तो वैक्यूम क्लीनर होता है।" एक बार फिर से घर ठहाकों से गूँज उठा।
