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richa agarwal

Children Stories

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richa agarwal

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चित्रकला

चित्रकला

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हाँ ये मैं हूँ, ये मेरी ही कहानी है। मेरा नाम है परी। जी आप लोग सोच रहे होंगे ना कि मैं किसी सपने के जैसी सुंदर, चंचल होंगी, जो एक बड़े से घर में रहती होगी। तो इसमे से आधी बात तो सच है मैं एक बहुत बड़ी हवेली में रहती हूँ, भले ही मेरी उम्र मात्र 9 वर्ष है पर पूरा घर बस परी परी पुकारता रहता है, जी हाँ ये एकदम सच है मेरे नाम की तरह।

मैं एक नौकरानी की बेटी हूँ और यही मालिकों की सेवा करती हूँ। मेरा रंग मालिक के बेटी ऋतु की तरह गोरा तो नहीं ना ही मैं उसकी तरह बड़े स्कूल में जाती हूँ। बस यही हवेली से थोड़ी दूर बरगद का पेड़ है वहाँ से दाहिने हाथ पे कुछ 100 कदम चल के गाँव की पाठशाला में जाती हूँ। हमारे मास्टर साहब बहुत अच्छे हैं, वो हवेली वालों की तरह गरीब और अमीर में फर्क भी नहीं करते। वहाँ हवेली में तो मुझे ऋतु मेमसाहब के कमरे में जाने की भी इजाजत नहीं है। वो लोग कहते हैं मैं एक नोकरानी की बेटी हूँ और मैं ऋतु मेमसाहब को भी अपने जैसा बना दूंगी। 

खैर मुझे ये तो पता नहीं की वो लोग ऐसा क्यों कहते हैं, पर माँ ने बताया कि हम लोग गरीब हैं, और ऋतु मेमसाहब बहुत अमीर हैं। इसलिए गरीब और अमीर कभी दोस्त नहीं हो सकते। और शायद इसीलिए मेरा कोई दोस्त भी नहीं बनना चाहता, स्कूल में भी सब मेरे काले रंग का मजाक बनाते हैं, कहते हैं नौकरानी की बेटी भी नौकरानी ही तो बनेगी। मुझे वो लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं है। मैं तो बस स्कूल में चित्रकला सीखने जाती हूँ। मैं बहुत सुंदर सुन्दर चित्र भी बना सकती हूँ। दुनिया में शायद एक ही काम मुझे इतना अच्छा लगता है। मन तो करता है सारा दिन बैठकर बस चित्र ही बनाती रहूँ, पर हवेली जाकर काम भी तो करना है ना।

शाम को स्कूल से लौटते वक्त माली से फूल और इस्त्री को दिए कपड़े भी तो लेने हैं आज मुझे। और मैं तो भूल ही गई ऋतु मेमसाहब ने भी तो मुझसे अपने स्कूल में होने वाली चित्रकला प्रतियोगिता के लिए कोई सुंदर से "जंगल में नाचते मोर" की तस्वीर बनाने को कहा था। आज तो पक्का मेरी डांट पड़ेगी और मेरी माँ की तनख्वाह से पैसे कटेंगे। पर मैं भी क्या करूँ माली ने अब तक माला पिरो के नहीं रखी थी।

हवेली जाते ही आज तो मैं मालकिन को कपड़े गिनवा के सीधे ऋतु मेमसाहब के लिए मोर का चित्र बनाने बैठ गई। और माँ से बस इतना पूछा कि मुझे कोई ढूंढ तो नहीं रहा था। माँ ने जवाब तो दिया कि नहीं पर उसे जानना था की मैं ये क्यों पूछ रही हूँ पर मैं झटपट भाग के कोठरी में आ गई क्योंकि माँ को मेरा घर का कोई भी काम करना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। और अगर उसे पता चलता कि मैं फिर हर साल की तरह इस साल भी ऋतु मेमसाहब की प्रतियोगिता के लिए वो चित्र बना रही हूँ तो वो फिर से नाराज हो जाती।

रात होने से पहले मैन चित्र तो बना लिया पर पता नई जिसके लिए बनाया है उसे कैसा लगेगा यही मन में विचार करते हुए मैने चित्र मेमसाहब को दिखाया, वो चित्र को देख के बहुत खुश भी हुईं। उन्होंने मुझसे वादा भी किया कि अगर इस साल भी वही जीती तो वो मुझे अपने जन्मदिन वाली पुरानी ड्रेस ईनाम में देंगी। अब तो उनसे ज्यादा उनके जीतने की खबर का इंतजार मुझे हो रहा है पर रिजल्ट आने में दो दिन का समय लगेगा, मुझे पता नहीं आज रात मुझे नींद कैसे आएगी। माँ को भी नहीं बता सकती कि नींद क्यों नहीं आ रही।


अगले दिन


हर रोज की तरह आज भी माँ ने चाय बनाई और मैं सबके कमरो में चाय देकर अपने स्कूल चली गई।

कल 14 नवंबर है बाल दिवस और ऋतु मेमसाहब की तरह हमारे स्कूल में भी तरह तरह की प्रितियोगिताओ का आयोजन होने वाला है। मास्टर साहब बता रहे थे कि कोई भी छात्र कितनी भी प्रतियोगिताओं में भाग ले सकता है। और जीतने वाले को ईनाम भी मिलेगा। 

मैंने भी अपना नाम चित्रकला और दौड प्रतियोगिता के लिए लिखवा दिया है, चित्रकला में मैं क्या बनाउंगी ये तो अभी तक मैने सोचा नहीं है पर हाँ दौड़ने का अभ्यास जरूर कर लिया है। आज मैं स्कूल से हवेली मात्र 4 मिनट में आ गई। और सीधा कोठरी में आकर ही सांस ली है। फिर मालकिन के लिए सौदा लेने में भी आज मैने बिल्कुल देर नहीं लगाई, झटपट दौड़ के गई और आ भी गई। कल का दिन मेरे लिए बहुत खास है क्योंकि अगर मेमसाहब जीत गई तो वो सुंदर वाली ड्रेस फिर मेरी हो जाएगी।


2 दिन बाद


वैसे तो मैं आज अपने स्कूल जाने के लिए भी बहुत उतावली थी। बिना नाश्ता किये ही मैं भागकर आज तो केवल 3.5 मिनट में ही स्कूल पहुँच गयी। और मैन दूर से ही सुना कि स्कूल से कुछ गाने बजाने की आवाज आ रही है, पास जाकर पता लगा की कितनी सुंदर तैयारी हो रखी है। रंग बिरंगी पतंगों और गुब्बारों से दीवार की दरार और सीलन तो आज नजर ही नहीं आ रही थी। एक बार को तो मैं सोच में पड़ गयी कि मैं कहीं गलत जगह तो नहीं आ गई। फिर अपने साथ के बच्चों को देखकर तसल्ली सी मिली। 

सब बहुत उत्साहित नजर आ रहे थे और सभी बच्चे अपनी अपनी भाग ली हुई प्रतियोगिताओं की तैयारी में लगे हुए थे। वैसे मुझे इन सब से कोई मतलब नहीं था मुझे तो बस ये जानना था कि जीतने वाले को ईनाम में क्या मिलने वाला है। मंच के पास रंग बिरंगे कागजो में कुछ तो लपेट के रखा हुआ था। मुझे ऋतु मेमसाहब ने एक बार बताया था उनके स्कूल में भी ऐसे ही जीतने वाले का नाम बुला कर उसे प्रधानाचार्य जी ईनाम देते हैं, और बाकी सभी लोग उसके लिए तालियाँ बजाते हैं।

मैं सोच ही रही थी की कितना अच्छा लगता होगा ऐसे कि उतने में ही चित्रकला प्रतियोगिता की घोषणा हो गई। 

मैन तो अब तक कुछ भी नहीं सोचा था कि मुझे क्या बनाना है। प्रतोयोगिता के लिए मास्टर साहब ने हमे 1 घंटे का समय दिया था और ये भी कहा की समय सीमित है। मेरे साथ बैठे सब लोग कुछ कुछ बनाने लगे थे, किसी के कागज पे आम बना है तो किसी के पे तोते का जोड़ा तो किसी के पे गांव की झलक दिख रही थी। अब मैं भला इसमे क्या अलग सा बनाती। तकरीबन 15 मिनट सोचने के बाद मुझे याद आया जो मैंने ऋतु मेमसाहब के लिए जंगल में नाचते मोर की तस्वीर बनाई थी, क्यों ना वही बना दूँ। पर उसके लिए शायद समय थोड़ा कम पड़े। फिर भी और वक़्त खराब किए बगैर मैन बनाना शुरू किया। मास्टर साहब ने बताया की मात्र 5 मीन शेष हैं इसलिए सब बच्चे जल्दी करे। मैंने 2 दिन पहले ही ऐसी तस्वीर बनाई थी तो मेरी भी बनने वाली ही थी।

मैंने जल्दी जल्दी में बाकियों के चित्र तो नहीं देखे पर मुझे डर लग रहा था कि ऐसा ना हो कि मैं हार जाऊँ। और मैं मन ही मन बस भगवान से कह रही थी कि मुझे भी वो रंग बिरंगे कागजों में लिपटे हुए ईनाम चाहिये हैं और फिर सब लोग मेरे लिए तालियाँ बजाएं। खैर फिर और भी प्रतियोगिताओंकी घोषणा हो रही थी। यही सुन कर मैं अपनी अगली प्रतियोगिता के लिए दौड़ने चली गई। अब मुझे पिछ्ली प्रतियोगिता का कुछ भी दिमाग में नहीं था। मैं उस पूरे दिन स्कूल में बहुत खुश थी। 

शाम को 4 बजे सब प्रतियोगिताओं के विजेता घोषित किए जाने थे। अब 4 बजने में कुछ समय ही शेष रह गया था। फिर कुछ देर में ही हमारे बूढ़े से सफेद बाल वाले प्रधानाचार्य जी ने अपना चश्मा ठीक करते हुए, अपने आधे कपकपाते हाथों से एक कागज को पढ़ना शुरू किया। जिसमे उन्होंने हम सबको नेहरू जी की कहानी सुनाई और ये भी बताया कि हम आज का दिन यहाँ इतना उत्साह पूर्वक क्यों मनाते हैं। पर मुझे तो देर थी बस अपना नाम सुनने की। इसी के तुरन्त बाद हमारे विज्ञान के मास्टर साहब ने सब विजेताओं के नाम पुकारना शुरु किया। 

सबसे पहले नृत्य कला के लिए कमला को पुरस्कृत किया गया, फिर संगीत के लिए विजय को, 3 टांग दौड़ के लिये रश्मी और संगीता को फिर निम्बू चम्मच दौड़ के लिए मेरी इकलौती सहेली मीनू का नाम लिया गया। ना जाने मेरा नाम कब बुलाया जाएगा मैं मन ही मन यही सोच रही थी की मास्टर साहब ने एक चित्र दिखाते हुए कहा चित्रकला प्रतियोगिता में कक्षा 3 की छात्रा परी कुमारी ने सबसे अच्छा चित्र बना कर पूरे अध्यापक वर्ग को अचम्भित कर दिया है। मैं मंच पर दौड़ते हुए पहुची ही थी की मुख्य अतिथि ने उस चित्र को देखकर मुझे जीवन में बहुत तरक्की करने का आशीर्वाद दिया और मेरी पूरे साल की फीस भी माफ करवाने का आश्वासन भी दिया। 

मेरी खुशी का तो मानो ठिकाना ही नहीं रहा और जब माँ को ये बात पता चलेगी तो वो कितना खुश होगी। इस सबसे मैं इतना खुश थी कि ईनाम को खोलकर देखना भी भूल गई। आज तो जैसे मुझे पंख लग गए हैं, मैं उड़ ना जाऊँ कहीं।

 मैं चित्र हाथ में लेकर दौड़ती हुई माँके पास हवेली जाकर उसे ये खबर सुनाना चाहती थी। लेकिन हवेली के दरवाजे से अंदर घुसते वक़्त मैं हड़बड़ी में एक हल्का स्लेटी रंग का सूट पहने आधे सफेद बाल वाले आदमी से टकरा गयी। मैं बहुत घबरा गयी थी की कहीं मालिक इसके लिए मुझे सजा ना दे दे। देखने में तो मालिक के कोई दोस्त जान पड़ रहे थे। मैंने बिना देर किये उनसे अपनी अनजाने में की हुई गलती की क्षमा मांगी। पर ये क्या वो एकदम शांत बूत से मेरी तरफ बढ़कर जमीन की ओर झुक गए। दरअसल मैंने डर के मारे अपना चित्र भी नहीं उठाया जो टकराने से जमीन पर गिर गया था। वो उसे ही उठा रहे थे।

 उन्होंने चित्र की ओर शून्य भाव प्रकट करते हुए पूछा ये चित्र किसने बनाया है। मुझे लगा की शायद उन्हें भी मेरा चित्र पसंद आया इसलिए मैंने भी खुश होकर बताया कि ये मैंने बनाया है। और ये भी बताया कि स्कूल में सबने मेरी कितनी प्रसन्नता की और मेरी पूरे साल की फीस भी अब भरने की कोई जरूरत नहीं है। मैने तो उत्साह उत्साह में उन्हें एक सांस में ही सब बता दिया पर उनका परिचय पूछना भूल गई। याद आते ही मैंने मध्यम स्वर में उनसे पूछा आप मालिक के दोस्त हैं ना.? और ये उनसे अनुरोध भी किया की मैं खुशी की वजह से दौड़ती आ रही थी और आपसे टकरा गई, इसलिए आप ये बात मालिक से न कहे तो बहुत अच्छा होगा। फिर भी वे मूक ही रहे और मेरा चित्र हाथ में लिए लिए हवेली की ओर अंदर वापस चल दिए। मैं भी उनके पीछे ही थी, वैसे तो मैं अपना चित्र वापस मांगना चाहती थी पर उनका गुस्से वाला लाल मूँह देखकर मैं बस चलती गई पर कुछ कह नहीं पाई।

 ठाकुर साहब, ठाकुर साहब नीचे आइये, ऐसे स्वर में उन्होंने मालिक कुछ 3 से 4 आवाजें लगाई। मैं बहुत घबरा रही थी कि अब मालिक मुझे क्या सजा देंगे और मालकिन तो पक्के से माँ की पगार काटेगी ही। मैं तो माँ को खुश खबरी देने आई थी पर यहाँ तो सब उल्टा होने वाला था। मैं मन में ऐसे विचार कर ही रही थी कि कोट पहने हुए गुस्से से लाल मूँह वाले साहब ने मालिक से कहा कि हम आपकी बेटी ऋतु को अपने स्कूल से निकाल रहे हैं। ये सुनकर तो मैं भी हैरान हो गई।

 दरअसल ये कोट वाले अंकल और कोई नहीं बल्कि ऋतु मेमसाहब के स्कूल के प्रधानाध्यापक थे। जो ऋतु मेमसाहब की बनाई हुई उस तस्वीर के लिए उन्हें जो पुरस्कार मिला है उसकी बधाई देने घर आये थे। लेकिन मेरी नादानी की वजह से उन्हें सच पता चल गया कि वो तस्वीर ऋतु मेमसाहब ने नहीं मैंने बनाई है।

ये जानकर वो मेरी तरफ बढ़े और मुझसे बोले कि अपनी कला किसी और को नहीं दी जा सकती। ये चीज हमेशा आपकी ही रहती है और झूठ ज्यादा दिन तक नहीं ठहर सकता। फिर मेरे सिर पर अपना हाथ सहलाते हुए उन्होंने कहा कि मैं और भी सुंदर चित्र बना सकती हूँ, यदि मुझे सही मार्गदर्शनमील।उसके लिए वो मुझे अपने स्कूल में पढा कर बहुत आगे बढ़ाना चाहते हैं। मेरे लिए तो ये सब किसी सपने से कम नहीं था। ये नए मास्टर साहब की आवाज से हवेली के बाकी सदस्य और माँ भी वही आ गई थी, और जो भी हुआ सबने सुना। मेरी माँ की तो आंखे ही भर आयी। उसने झट से मुझे गले लगा लिया और फिर मास्टर साहब का आभार प्रकट किया। 

मालिक और मालकिन ऋतु मेमसाहब को लेकर बहुत निराश नजर आ रहे थे। मैंने उनके चेहरे देखकर मास्टर साहब से विनती की कि वो ऋतु मेमसाहब को स्कूल आने से ना रोके। और खुशी की बात ये थी कि वो मेरी बात मान गए।

अब मैं और ऋतु मेमसाहब दोनों लोग कक्षा 5 में आ चुके हैं। और तबसे मालिक की गाड़ी ही हम दोनों को साथ में स्कूल लेती और छोड़ती भी है। अब यहाँ मेरे बहुत सारे दोस्त भी है और कोई मेरे काले रंग के लिए मेरा मजाक भी नहीं बनाता। इस स्कूल में भी हर प्रितियोगिता में चित्रकला में मै ही जीतती हूँ।

इस तरह मुझे तो मेरे पंख भी मिल गए, और मैंने अपने पंखों ने उड़ान भरना भी शुरू कर दिया है।



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