बड़ों की सीख
बड़ों की सीख
सुदूर हिमालय पर्वत के दुर्गम स्थान पर नन्दनवन नामक एक घना और सुन्दर जंगल था। उस जंगल में सभी जानवर हिल-मिल कर प्रेम से रहते थे। वहीं पर एक हिरण का परिवार रहता था। हिरण का नाम था सारंग। उसके हीरा और पन्ना नामक दो प्यारे प्यारे-प्यारे बच्चे थे। उन दोनों की मोटू हाथी के बच्चे नंदू के साथ गहरी दोस्ती थी। वह सभी एक साथ स्कूल जाते और खेलते थे।
एक दिन सारंग हिरण ने अपने बच्चों को समझाया कि, "इस नन्दनवन में केसरी नामक बाघ का राज है, जो बहुत अच्छे राजा हैं और सब का ध्यान रखते हैं। वे किसी के साथ अन्याय नहीं होने देते, परन्तु इस जंगल के बाहर अनेक भयानक और खतरनाक जानवर रहते हैं जो कभी भी उन्हें हानि पहुॅंचा सकते हैं।" सारंग हिरण ने अपने बच्चों से कहा कि, "घर के पास ही खेलना और बिना बताए कहीं भी नहीं जाना।"
मोटू हाथी का पुत्र नंदू बहुत शैतान था। एक दिन जब शाम को तीनों बच्चे हीरा, पन्ना व नंदू खेलने के लिए पास के मैदान में जा रहे थे तो नंदू ने कहा कि, "आज हम लोगों को पास के ही तालाब पर जाना चाहिए, क्योंकि आज उसका पानी में खेलने का बहुत मन कर रहा है।" हीरा और पन्ना ने कहा कि, "नहीं! हमारे पिताजी ने वहाॅं जाने के लिए मना किया है, क्योंकि वहाॅं पर दूसरे जंगल के भी बहुत से जानवर पानी पीने के लिए आते हैं। लेकिन नंदू ने जिद् की कि, "चलो सब वही चलते हैं बड़ा मजा आएगा। कल मैं अपने माता-पिता के साथ वहाॅं गया था और हम लोगों ने दिन भर खूब मज़ा किया था।"
उसकी ज़िद पर हीरा और पन्ना भी वहाॅं जाने के लिए तैयार हो गए और सब वहाॅं पहुॅंच गए। अभी उन्होंने खेलना शुरू ही किया था कि उन्हें आनन्द आने लगा और खेल-खेल में भूल गए कि कब शाम हो गई और अंधेरा होने को आ गया।
इधर सारंग हिरण जब घर पहुॅंचा तो उसने बच्चों को घर में न पाकर आसपास ऐसी जगहों पर खोजा जहाॅं पर वे प्रायः खेलने के लिए जाते थे। किन्तु अपने बच्चों को वहाॅं ना पाकर वह घबरा गया और उन्हें खोजने के लिए निकल पड़ा। रास्ते में उसे जंगा जिराफ मिला। सारंग ने जंगा से पूछा कि, "क्या तुमने मेरे बच्चों हीरा और पन्ना को देखा है?" जंगा जिराफ ने बताया कि, "तीनों बच्चों को उसने कुछ देर पहले ही पास के मैदान में खेलते हुए देखा था।" किन्तु सारंग तो उसी मैदान से होकर आ रहा था। तीनों बच्चे वहाॅं नहीं थे।
जंगा जिराफ और सारंग हिरण मिलकर बच्चों को खोजने के लिए आगे बढ़े और रास्ते में मिलने वाले सभी जानवरों से पूछते थे कि, "क्या उन्होंने कहीं बच्चों को देखा है?" पर सभी ने अपनी अनभिज्ञता व्यक्त की और बच्चों को खोजने में उनकी सहायता करने के लिए साथ चल पड़े।
इधर बच्चे खेलने में इतने आनन्दित थे कि उन्हें समय का पता ही नहीं चला कि कब रात होने वाली थी। तभी वहाॅं पर भेड़ियों का एक झुण्ड जो पास की झाड़ियों में छुपा हुआ था, उनकी दृष्टि पानी में खेल रहे मोटू हाथी और सारंग हिरण के बच्चों पर पड़ी और उन्होंने बच्चों को पकड़ने का प्रयास प्रारम्भ किया।
उसी तालाब के पास से केसरी बाघ गुज़र रहा था। उसने देखा कि बच्चों की जान खतरे में है उसने वहाॅं दहाड़ मारकर सभी भेड़ियों को ललकारा। भेड़ियों ने जंगल के राजा केसरी बाघ को अपने सामने देखा तो वहाॅं से डर कर भाग गए।
फिर बाघ ने बच्चों से पूछा कि, "तुम लोग यहाॅं कैसे आ गए?" बच्चों ने बताया कि, "हम लोग यहाॅं पर खेलने आए थे।" केसरी बाघ सारंग हिरण और मोटू हाथी का दोस्त था। उसने सभी बच्चों से कहा कि, "जब तुम्हारे पिताजी ने कहा था कि घर से इतनी दूर खेलने मत जाना फिर तुम लोग इतनी दूर क्यों आए? वह भी इतनी रात के समय।" हीरा और पन्ना ने अपनी बात समझाई कि, "जब वह खेलने आए तब उजाला था और खेलते खेलते उन्हें पता ही नहीं चला कि कब सूर्यास्त हो गया।" नंदू ने भी हीरा और पन्ना की बात पर हाॅं में हाॅं मिलाई।
केसरी बाघ उन सभी बच्चों को अपने साथ लेकर सारंग हिरण के घर की ओर चला। रास्ते में उन्हें सारंग हिरण, मोटू हाथी, जंगा जिराफ और जंगल के जानवर मिले, जो सब मिलकर बच्चों की खोज के लिए निकले हुए थे। केसरी बाघ ने उन्हें बताया कि बच्चे सकुशल उसके पास हैं। वे सब बच्चों को लेकर घर आ गए। बच्चों ने उसी समय सबके सामने प्रण किया कि अब वे सदैव अपने माता-पिता की बात मानेंगे और बड़ों से पूछे बिना अपने मन से कहीं नहीं जाएंगे।
शिक्षा-
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अपने माता-पिता और बड़ों की बात माननी चाहिए और मनमानी नहीं करनी चाहिए।
