बाबा
बाबा
हमने पापा , चाचा , ताया सभी को उन्हें बाबा कहते ही सुना था ।हम सभी बच्चे भी उन्हें बाबा ही कहते थे ।मेरे साथ उनका कुछ ज्यादा ही लगाव था।जब भी कोई शैतानी करते जाकर उनकी गोद में छुप जाते थे।लगता था जैसे किसी बरगद की ओट में सारे संसार से सुरक्षित हों।
बरगद ,हां शायद यही कहना ठीक होगा या फिर इससे भी ज्यादा । उनका कद ,भुजाएं इसका प्रमाण थी।सब कुछ अपने में समेट लेने की ताकत।सारे परिवार की ताकत थे बाबा।बाबा ने जो एक बार कह दिया वो पत्थर की लकीर हो जाता था ।किसी में हिम्मत नहीं थी कि उनको टोक सके।बाबा नौकरी करते थे ,शायद मेरे जन्म से पहले तक ।जब बड़ा बेटा अफसर बना तो बाबा कुछ बीमार रहने लगे थे । सेहत को देखते हुए उनकी नौकरी छुड़ा दी गई।बाबा तो ठीक हो गए पर सबके हाथ पर कुछ ना कुछ रखने वाले बाबा अब कुछ मजबूर से हो गए थे ।बरगद की भुजाएं अब कुछ सिकुड़ने लगी थी ।अब बाबा का काम करना अफसर बेटे को अपनी शान के खिलाफ लगने लगा था । अफसर बेटा कुछ पैसे हर महीने बाबा को देने लगा था ।पर बाबा जो पूरी उम्र अपनी शर्तों पर जिए थे , उनको ये सब एक भीख के समान लगता था । शायद यही जेनरेशन गैप था ।पेड़ की डालियां अब आजाद होने को बेताब थी , पर जमाने के साथ सभी ये भूलते जा रहे थे कि डालियां पेड़ के साथ ही अच्छी लगती हैं , उसके बगैर नहीं ।अब सब बाबा की बात मानते तो थे पर एक विरोधाभास भी होने लगा था। बाबा को शायद ये पता लग गया था।तभी तो अब वो कुछ चुप से रहने लगे थे । लगने लगा था कि बरगद की जड़ें कमजोर पड़ने लगी हैं । और जब वो बरगद ढहा तो परिवार की नींव भी कमजोर पड़ गई मानो बाबा ने ही उनको अपने से जकड़ रखा था । पर उनके जाने के साथ ही परिवार भी अलग अलग होने लगा । सोचता हूं कि काश! कोई फिर से बाबा जैसा बने जो टूटी हुई डालियों को फिर से जोड़ सके।
