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ये बसंत मन...

ये बसंत मन को कितना लुभाती है, बंजर में भी कोई कली जब खिल आती है; हर चेहरे,हर फूल,हर पत्ती पर एक मुस्कान नजर आती है, बसंत तो सदियों से प्रेम का नयापन ही लाती है, आजकल के युग में प्रेम के जो तरीके बदल गए, काश! बदले सिर्फ तरीक़े;प्रेम का अर्थ ना बदले! बिना मुलाक़ात भी रहे, मिलन सा नशा काश पहले के प्रेम से जज़्बात ना बदले!! अनीता भारद्वाज

By Anita Bhardwaj
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