“
वो खुद आते मुझसे कहते,
आखिर मेरा ज़ुर्म था क्या।
वो ना आते लिख पहुंचाते,
आखिर मेरा ज़ुर्म था क्या।
खुद को खो कर उनको चाहा,
रब बना लिया सजदा भी किया,
वो इश्क इबादद सा था जिया,
इतने पर भी इतना न हुआ,
वो मेरी रूह को ही समझाते,
आखिर मेरा ज़ुर्म था क्या।
”