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ठोकरें खाकर...

ठोकरें खाकर सम्हलने का मज़ा कुछ और है, राहों में भटककर मंज़िल को पाने का मज़ा कुछ और है, मयखाने के बाहर झूमते हैं सब छलकते पैमाने के साथ, खाली पैमाने के साथ झूमने का मज़ा कुछ और है।।

By Kusum Joshi
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