“
सुनो ना ..... स्वार्थी बन जाओ बिल्कुल स्वार्थी, अपने सुख की भांति किसी को अपना दुख भी मत दो। अपनी खुशियों की तरह अपनी उदासियाँ भी मत बाटों। जो है तुम्हारा उसको सहो जैसे सहते हो अपने चेहरे पर जेष्ठ की चिलचिलाती धूप। कभी इस चिचिलाती धूप में बार बार बन्द होती हुई पलको को खुला रखने का प्रयास करो तुम देखोगें.... अंधाकर और प्रकाश कितने पास पास है।
भावुक
”