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सोने की...

सोने की चिड़िया कभी, कहलाता था देश आई आँधी लोभ की, सोना बचा न शेष। सोना बचा न शेष, पुनः अपनों ने लूटा। भरे विदेशी कोष, देश का ताला टूटा। हुई इस तरह खूब, सफाई हर कोने की ढूँढ रही अब डाल, लुटी चिड़िया सोने की। -कल्पना रामानी, नवी मुंबई

By कल्पना रामानी
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