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शाम की...
शाम की उदासी खोल...
शाम की...
“
शाम की उदासी खोल जाती है तेरी यादों का पिटारा हर रोज़।
मुकम्मल और नामुकम्मल के दायरों उलझी मैं बीत जाती हूँ इमरोज़।।
#श्वेता
”
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