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रूहानी...
रूहानी सकूँ के...
रूहानी सकूँ...
“
रूहानी सकूँ के लिए जरुरी है कि न धारा के साथ बहो न धारा के विरुद्ध, बेहतर है, तिरते रहो- एक सूखे पत्ते की तरह.असम्पृक्त.
भगीरथ
”
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