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रोज शाम चांद से मिलने की ख्वाहिश हो जाती है,
इन आसमानों में मेरे लिए साजिश हो जाती है ll
तंग आ चुका हू में इन बादलो के जलने से अब,
जब भी वो छत पे आती है बारिश हो जाती है ll
:- शिवांश पाराशर "राही"✍️
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