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पर्त दर पर्त...
पर्त दर पर्त...
पर्त दर...
“
पर्त दर पर्त छीला जाता नारीत्व आंगन में पल पल।
"नारी तुम केवल श्रद्धा हो" लिखना शायद कवि की
कोई मजबूरी ही रही होगी!
डॉ. अनु
०९.०९.२०२०
”
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