पेशे से अवकाश प्राप्त पॅथॉलॉजिस्ट pathlogist हूं। साहित्य में रुचि शुरू से ही रही। मूर्धन्य साहित्यकारों को पढ़ने और कुछ कुछ समझने के अवसर निरंतर मिलते रहे। लेखन की ओर रुझान कॉलेज के दिनों से ही रहा। गद्य लेखन हालांकि नहीं के बराबर रहा, कविता में विशेष रुचि रही। अब तक तीन कविता संग्रह (... Read more
Share with friendsपरिवार की अक्षुण्णता एवं समग्रता के लिए संयमित आचरण उतना ही ज़रूरी है जितना कि संतुलित आहार शरीर के और सद्विचार मन के लिए
दरवाज़े की झिर्रियों से झांकती धूप कहती है मुझे भीतर आने दो, कि भर दूं हर अंधेरे कोने को अपने दूधिया उजास से