“
*पगली हूं मैं*
हां, मैं पगली ही तो हूँ
जो बार-बार ठोकर खा
कर भी नहीं संभलती....
गिरती हूँ...
अपनों के हाथ थाम!
खाती हूं चोटें........
विश्वास,वफ़ा,रिस्तेदारी से,
फिर भी,
उन चोटों पर
मुस्कान की मलहम लगा
संस्कार की दुहाई देती
खुद को तैयार करती हूँ
पुनः चोट खाने को
क्योंकि
*पगली ही तो हूं मैं......*
*स्वराक्षी स्वरा*.....✍️
”